सम्पादकीय

लेखक की कलम से

अस्तित्व

सदियां गुज़र गयी हैं निकले हुये सड़क से,'कान्त' अब यहाँ पर कोई जानता भी...

बाहर निकलूं मैं भी भीगूं चाह रहा है...

अम्मा जरा देख तो ऊपर चले आ रहे हैं बादल, गरज रहे हैं, बरस रहे हैं दीख...

गर्मी की छुट्टी और मीठे-मीठे आम।

मीठा होता खस्ता खाजा मीठा होता हलुआ ताजा, मीठे होते गट्टे गोल सबसे मीठे, मीठे बोल। मीठे होते...

सारांश

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अस्तित्व

सदियां गुज़र गयी हैं निकले हुये सड़क से,'कान्त' अब यहाँ पर कोई जानता भी है   इस बार बारिश खूब जम के हुयी थी. सारे गाँव में खूब हलचल रही पूरे मौसम भर....

बाहर निकलूं मैं भी भीगूं चाह रहा है मेरा मन

अम्मा जरा देख तो ऊपर चले आ रहे हैं बादल, गरज रहे हैं, बरस रहे हैं दीख रहा है जल ही जल। हवा चल रही क्या पुरवाई झूम रही है डाली-डाली, ऊपर काली घटा घिरी है नीचे फैली हरियाली। भीग...

गर्मी की छुट्टी और मीठे-मीठे आम।

मीठा होता खस्ता खाजा मीठा होता हलुआ ताजा, मीठे होते गट्टे गोल सबसे मीठे, मीठे बोल। मीठे होते आम निराले मीठे होते जामुन काले, मीठे होते गन्ने गोल सबसे मीठे, मीठे बोल। दोस्तों, बच्‍चों के प्‍यारे कवि सोहन लाल द्विवेदी...

ज़िन्दगी चख ली (शुभम मंगला)

मुखकवर बैक कवर पूरा कवर (कवर के चित्र पर क्लिक करके बड़ा करें) कविता-संग्रह । कवि- शुभम मंगला ISBN- 978-93-81394-02-1 प्रकाशन वर्ष- 2011 प्रकार- हार्डबाउंड (HB) या सजिल्द विधा- कविता, ग़ज़ल, नज़्म कवि- शुभम मंगला पृष्ठ- 120 कविताओं, ग़ज़लों की कुल संख्या-...

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चुनिंदा